Galatfehmi Shayari – ग़लतफहमी शायरी

Galatfehmi Shayari - ग़लतफहमी शायरी

गुरूर किस बात का साहब,आज मिट्टी के ऊपर,कल मिट्टी के नीचे….
न वो मिलता है न मैं रूकती हूँपता नहीं रास्ता गलत है या मंजिल..

 

शीशे ओर दिल में सिर्फ़ एक ही फ़र्क होता है.वैसे तो दोनो नाज़ुक ही होते हैं,मगर..शीशा ग़लत से टूटता है ओर दिल
ग़लत फहमी से..

 

जो भी है ग़लतफहमी मिटा दे,देनी हो अगर कोई सज़ा तो सज़ा दे,मगर नाराज़ होकर तुझे यू ना जाने दूंगा,सारे
शिकवो को दूर कर अपना बना लूँगा…

 

तेरे जाने से जान से नही जाउँगा मेंग़लत फ़हमी है की तेरे बीना मर जाउँगा में…
गलतफहमी में जिंदगी गुजार दी,कभी हम नहीं समझे,कभी तुम नहीं समझ सके…